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मुंबई : बीजेपी भले ही कन्याकुमारी से चेन्नै तक बुलेट ट्रेन शुरू करने का वादा कर चुकी है लेकिन अभी पहले फेज के तहत मुंबई से अहमदाबाद के बीच का प्रॉजेक्ट ही लटका हुआ है। मुंबई से करीब 140 किलोमीटर दूर डहाणू में बुलेट ट्रेन प्रॉजेक्ट का विरोध हो रहा है। महाराष्ट्र के पालघर जिले के वर्ली जनजाति के लोग इसके विरोध में हैं और आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए यह एक स्थानीय मुद्दा बन सकता है। एसटी के लिए रिजर्व इस सीट पर बीजेपी 2014 के आम चुनाव और 2018 के उपचुनाव में जीतती आ रही है। हालांकि यहां के मौजूदा बीजेपी सांसद राजेंद्र गावित ने शिवसेना का दामन थाम लिया है। वहीं, बीजेपी ने अब तक इस सीट पर अपने प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है। 

पालघर की आधी आबादी प्रॉजेक्ट से होगी प्रभावित 

डहाणू के 42 साल के रूपेश रावते कहते हैं कि वह अपनी 1.5 एकड़ जमीन उस ट्रेन के प्रॉजेक्ट के लिए क्यों दें जो ट्रेन उनके जैसे लोगों के लिए नहीं है। क्या हम सिर्फ बुलेट ट्रेन को यहां से गुजरते हुए देखेंगे। क्या बुलेट ट्रेन हमारे लिए यहां रुकेगी। हम जैसे लोग तो उस ट्रेन में बैठने की हैसियत तक नहीं रखते। पालघर के करीब आधी आबादी की जमीन बुलेट ट्रेन प्रॉजेक्ट से प्रभावित होगी। 

78 साल के सोमा कोठारी का कहना है कि यहां के अधिकतर लोग अपनी जमीन नहीं देना चाहते। यदि सरकार हमें चार गुना भी मुआवजा देगी तब भी हम अपनी जमीन देने को तैयार नहीं हैं। डहाणू के लोग यहां धान की खेती करते हैं। यह इलाका चीकू के बगीचों के लिए भी मशहूर है। 

यहां के लोगों में भ्रम की स्थिति: रेल कॉर्पोरेशन 

नैशनल हाई स्पीड रेल कॉर्पोरेशन की प्रवक्ता सुषमा गौड़ ने बताया कि अभी तक प्रस्तावित जमीन में से एक तिहाई जमीन का अधिग्रहण हो चुका है, जिसपर प्रॉजेक्ट का काम चल रहा है। कॉर्पोरेशन ने 79 में से 40 गांवों का सर्वे कराया है। यहां के लोगों में कई तरह के भ्रम और अविश्वास है, जिसके चलते जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में वक्त लग रहा है। जिला प्रशासन और दूसरे लोगों से इसमें सहयोग लिया जा रहा है। जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी तरह से वाजिब और पारदर्शी है। 

गौरतलब है कि सितंबर 2017 में पहली बुलेट ट्रेन को मंजूरी मिलने के बाद अब तक जमीन अधिग्रहण का काम भी पूरा नहीं हो सका है। इसके लिए 1414 हेक्टेयर जमीन की जरूरत है। 1.1 लाख करोड़ रुपये का यह प्रॉजेक्ट महाराष्ट्र और गुजरात के करीब 11 जिलों से होकर गुजरेगी। जमीन अधिग्रहण के लिए दिसंबर 2018 डेडलाइन थी, जिसे पूरा करने में केंद्र सरकार पहले ही नाकाम रही है। 


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