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भिवंडी : लॉक डाउन की मियाद 3 मई तक बढ़ने से परप्रांतों से आए गरीब मजदूरों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है. समाजसेवी संगठनों द्वारा दिया गया भोजन गरीब मजदूरों की पेट की भूख को नहीं मिटा पा रहा है. भिवंडी से करीब 2 दर्जन से अधिक गरीब पावरलूम मजदूरों ने सिर पर बैग रखकर पैदल ही मुलुक की डगर पकड़ ली. लेकिन पड़घा पुलिस ने खड़वली नाका स्थित साईं रैन बसेरा मंदिर के पास पैदल जा रहे मजदूरों को रोक लिया. पड़घा पुलिस ने लाक डाउन तक मजदूरों को भोजन एवं रहने की व्यवस्था सुनिश्चित किये जाने का भरोसा  दिया है. उक्त जानकारी ठाणे ग्रामीण पुलिस उपाधीक्षक दिलीप गोडबोले ने दी है.

पेट की भूख से असहाय होकर लगभग दर्जनों मजदूर कामतघर, फेना पाड़ा, गायत्रीनगर, बाबला कंपाउड, पाइप लाइन आदि क्षेत्रों से पैदल ही इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) के लिए निकल पड़े. मजदूरों ने नाकाबंदी पर उपस्थित पुलिस वालों से हाथ जोड़ते हुए कहा कि कब तक भूखा रहूंगा साहेब, खाना बांटने वाले भी भरपेट भोजन नहीं देते. भिवंडी लौट कर अब नही आएंगे.

कई शिक्षित मजदूरों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश, बिहार में जब सांसद, विधायकी का चुनाव आता है तो नेताओं को मुंबई में रहने वाले परप्रांतीयों की की सुध आती है. सफेदपोश नेताओं द्वारा तब चुनाव प्रचार छोड़ कर मुंबई की झोपड़ियों में खोजा जाता हैं. चुनाव में गांव आकर वोट करने के लिए रेल टिकट, खर्च दिया जाता है. जब मुसीबत आती है तो नेता सुध लेने को भी नहीं सोचता है. लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ाए जाने के बाद शहर में प्रवासी मजदूर सड़कों के रास्ते पैदल ही अपने मुलुक जाने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं. मजदूरों के हालात को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े हो गए हैं. मजदूर देश की रीढ़ की हड्डी हैं. लाकडाउन घोषणा के पूर्व सरकार द्वारा मजदूरों को गृह प्रदेशों में भेजने की सुविधा पर गौर क्यों नही किया गया?


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