अलग रह रहे दंपति के बीच अजीब कानूनी जंग; मां बनना चाहती है महिला
मुंबई : एक दूसरे से अलग रह रहे एक दंपति के बीच अजीब कानूनी जंग छिड़ गई है. दरअसल, एक दंपति ने 2022 में अपने शुक्राणु-अंडाणु से एक IVF सेंटर में 16 भ्रूण तैयार करवाया और फिर उसे फ्रीज करवा दिया. लेकिन, इसके कुछ दिनों के भीतर उनके रिश्तों में खटास शुरू हो गई. वे दोनों अलग हो गए. इसके बाद महिला में मां बनने की इच्छा प्रबल हुई. फिर 42 वर्षीय महिला ने पति की सहमति के बिना इन भ्रूणों को दूसरे क्लिनिक में स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी. लेकिन, पति ने इसके लिए सहमति देने से इनकार कर दिया. फिर महिला ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उसने कहा है कि यह उसके मां बनने के अधिकार का उल्लंघन है. इस मामले और महिला का तर्क सुनने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट का माथा भी चकरा गया.
यह विवाद असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 के तहत पति-पत्नी दोनों की सहमति की अनिवार्यता को चुनौती देता है. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस नीला गोखले की बेंच ने इस मामले में नोटिस जारी कर सुनवाई 21 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी.
मामले की शुरुआत और विवाद
दंपति ने 2021 में शादी की थी. 2022 में उन्होंने केम्प्स कॉर्नर के एक IVF क्लिनिक में अपने अंडाणू और शुक्राणु से बने भ्रूण को फ्रोजेन करवाया और वार्षिक 25,000 रुपये की स्टोरेज फीस का भुगतान किया. लेकिन 2023 में उनके रिश्ते में खटास आ गई और छह अगस्त को दोनों अलग हो गए. महिला का दावा है कि नवंबर 2022 में उसे गर्भाशय फाइब्रॉएड्स का पता चला, जिसके लिए फरवरी 2024 में मायोमेक्टॉमी हुई. उसने एम्ब्रियो को कोलाबा के एक अन्य क्लिनिक में स्थानांतरित करने की कोशिश की, लेकिन पति ने ईमेल के जरिए क्लिनिक की प्रक्रिया पर रोक लगा दी. इसके लिए ART Act की धारा 29 के तहत दोनों की सहमति जरूरी थी. महिला का कहना है कि पति ने मध्यस्थता के दौरान एम्ब्रियो ट्रांसफर के लिए 25 लाख रुपये की मांग की, जिसके बाद उसने 29 मई 2025 को नगपाड़ा पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज कराई, जिसमें धमकी और प्रजनन अधिकारों के हनन का आरोप लगाया गया.
यह मामला अभी मजिस्ट्रेट कोर्ट में लंबित है. इधर, महिला ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल कर ART Act को चुनौती दी. उसने कहा कि इस कानून में वैवाहिक त्याग, अलगाव या रिश्ते के पूरी तरह टूटने की स्थिति में अपवाद होना चाहिए, क्योंकि यह उसके स्वास्थ्य और पहचान से जुड़ा मुद्दा है.
कानूनी पहलू
महिला के वकील जमशेद मिस्त्री के अनुसार ART Act एकल महिलाओं को सहायता देता है, लेकिन शादीशुदा महिलाओं को पति की सहमति के बिना बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो पितृ सत्तात्मक सोच को दर्शाता है. उन्होंने दावा किया कि पति की सहमति की अनिवार्यता से उसका मातृत्व का अधिकार छीना जा रहा है. हाईकोर्ट ने पति, क्लिनिक और नेशनल ART एंड सरोगेसी बोर्ड को नोटिस जारी किया है. महिला का तर्क है कि मायोमेक्टॉमी के चार-पांच महीने बाद एम्ब्रियो ट्रांस्प्लांट किया जाना था, लेकिन पति की ओर से पैदा अड़चन ने उसे परेशान किया. पुलिस FIR पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई, जो इस मामले की जटिलता को बढ़ाता है.