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मुंबई : बीजेपी को उम्मीद थी कि एकनाथ खडसे कभी पार्टी नहीं छोड़ेंगे, लेकिन लंबे समय तक उपेक्षा और हालात बदलने के लंबे होते इंतजार के बाद आखिर एकनाथ खडसे को बीजेपी छोड़नी पड़ी। खडसे की ओर से पार्टी छोड़ने का ऐलान किए जाने के बाद तत्काल महाराष्ट्र बीजेपी की तरफ से एक इंटरनल रिपोर्ट दिल्ली भेजी गई, जिसमें खडसे के पार्टी छोड़ने के परिणामों पर प्राथमिक आकलन किया गया है।

उम्मीद के मुताबिक पार्टी की महाराष्ट्र इकाई ने जो रिपोर्ट दिल्ली भेजी है, उसमें यह लिखा गया है कि खडसे के जाने से पार्टी को तत्काल कोई नुकसान नहीं होने वाला। खडसे के साथ कोई और बड़ा नेता पार्टी नहीं छोड़ रहा। अलबत्ता इस बात की आशंका जरूर जताई गई है कि खडसे के जाने से पार्टी के ओबीसी वोटर्स पर थोड़ा प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन यह इतनी बड़ी चिंता इसलिए नहीं है, क्योंकि फिलहाल चुनाव नहीं हैं।

सूत्रों का कहना है कि देवेंद्र फडणवीस की मर्जी के मुताबिक बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील ने यह रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को भेजी है। हालांकि बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने इस संदर्भ में पूछने पर कहा, 'राजनीति में इस तरह की तात्कालिक रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं होता। केंद्र में जो वरिष्ठ नेता बैठे हैं, उन्हें सब पता है कि किसके जाने से क्या नुकसान हो रहा है और किसके होने से क्या नुकसान हो रहा है।'

खडसे एपिसोड के बाद दिल्ली की चिंता यह है कि खडसे के साथ कितने विधायक हो सकते हैं? इसी संदर्भ में महाराष्ट्र प्रदेश इकाई से यह इंटरनल रिपोर्ट मांगी गई थी। इंटरनल रिपोर्ट में प्रदेश बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व को यह भरोसा दिलाया है कि खडसे के साथ कोई विधायक पार्टी छोड़कर नहीं जा रहा। हालांकि यही बात खडसे ने भी कही है कि वह अकेले ही बीजेपी छोड़ रहे हैं।

अलबत्ता एनसीपी लगातार यह दावा कर रही है कि बीजेपी के 12 विधायक उसके संपर्क में हैं। उधर, एनसीपी के एक बड़े नेता का आकलन है कि बीजेपी की ओर से बार-बार महाविकास अघाड़ी सरकार के गिरने की बात बीजेपी छोड़ने को तैयार बैठे विधायकों को भ्रमित करने के लिए ही की जाती है।

महाराष्ट्र में मराठा राजनीति के बाद सबसे ताकतवर समीकरण ओबीसी राजनीति का है। 2019 के चुनाव परिणामों के बाद से ही शरद पवार ओबीसी वोट बैंक को वापस राकांपा के पाले में लाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। उनके पास जितेंद्र अव्हाड और छगन भुजबल जैसे दो बड़े और सक्रिय ओबीसी नेता हैं, बावजूद इसके एकनाथ खडसे को एनसीपी में शामिल कर शरद पवार ने अपनी मोर्चाबंदी को और पुख्ता कर लिया है।

2014 के बाद महाराष्ट्र बीजेपी में एक तरह से देवेंद्र फडणवीस का एकाधिकार है। परंतु 2019 में बीजेपी की सत्ता में वापसी न हो पाने से फडणवीस के खिलाफ पार्टी में भीतर ही भीतर दबे स्वर में ही सही विरोध और नाराजी के स्वर दिखाई देने लगे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या एकनाथ खडसे का पार्टी छोड़ना ताबूत में पहली कील का काम करेगा?


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