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अमरावती : महाराष्ट्र पुलिस के लिए एक महिला को देर रात पुलिस स्टेशन में बुलाकर पूछताछ करना महंगा पड़ गया है। इस बाबत स्टेटह्यूमन राइट कमिशन में पीड़िता द्वारा शिकायत की गई थी। जिस पर फैसला सुनाते हुए आयोग ने एक लाख का जुर्माना पुलिस विभाग पर लगाया है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद पुलिस स्टेशन नहीं बनाया जा सकता।
दरअसल तकरीबन 10 साल पहले 21 मार्च 2011 में हुए एक केस में पीड़िता कंचनमाला गावंडे को उनके पति की गिरफ्तारी के बाद अमरावती पुलिस ने उन्हें और उनकी दो बेटियों को पुलिस स्टेशन बुलाया था। पुलिस ने उन्हें देर रात तक रोक कर रखा था और उन्हें धमकाया भी था।
पीड़िता कंचनमाला गावंडे ने इस मामले में महाराष्ट्र ह्यूमन राइट कमीशन में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार और शहर कोतवाली पुलिस स्टेशन के पुलिस इंस्पेक्टर शिवाजी बचते के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई थी। इस शिकायत पर कार्रवाई करते हुए आयोग ने एक लाख जुर्माने का आदेश दिया है। अमितेश कुमार फिलहाल नागपुर के मौजूदा पुलिस कमिश्नर भी हैं।
ह्यूमन राइट कमीशन के आदेश के बाद पीड़िता ने कहा है कि आखिरकार 11 साल के इंतजार के बाद उन्हें न्याय मिला है। उन्होंने बताया कि वह अपने पति के बारे में पुलिस के साथ सहयोग करने के लिए तैयार थीं। लेकिन वह लोग मुझे पुलिस स्टेशन से जाने नहीं दे रहे थे। मैं देर रात तक अपनी बेटियों के साथ पुलिस स्टेशन में इंतजार करती रही। उन्होंने इस तरह के बर्ताव पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या यह ठीक है?

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