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मुंबई : मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीय मतदाता दुविधा में है। उनका रुझान स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा। पिछले लोकसभा चुनाव में जिस तरह से उत्तर भारतीयों ने बीजेपी की तरफ एकतरफा रुझान दिखाया था, वैसा इस बार नहीं है। उत्तर भारतीय मतदाता बिखरा हुआ है। वह अपने पत्ते अभी नहीं खोल रहा। हालांकि, उत्तर प्रदेश की राजनीति का असर मुंबई के मतदाताओं पर भी है। गर्मियों की छुट्टियों में गांव जाने की जल्दी भी है।
चुनाव आयोग के अनुसार, जनवरी 2019 तक मुंबई की छह सीटों पर कुल 94 लाख 58 हजार 397 मतदाता दर्ज है जिसमें 17 लाख के आसपास उत्तर भारतीय मतदाता हैं। इसमें ज्यादातर मतदाता उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के आसपास के निवासी हैं। टटोलने पर कुछ तस्वीर सामने आती है कि उत्तर भारतीय मतदाताओं में अपर कास्ट का झुकाव बीजेपी की ओर है, जबकि लोअर कास्ट भ्रम की स्थिति में है। उसे इस बात का डर है कि राज ठाकरे ने कांग्रेस का समर्थन किया, तो उन्हें 2009 जैसी स्थिति भुगतनी पड़ सकती है। राज ठाकरे की भूमिक पर उत्तर भारतीय मतदाताओं की पैनी नजर है। वैसे, अलग-अलग लोकसभा सीटों पर अलग-अलग रुझान दिखाई दे रहा है।
2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर भारतीय मतदाता एकतरफा बीजेपी की तरफ चला गया। सन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा और महानगरपालिका के चुनावों में भी उत्तर भारतीय मतदाता बीजेपी के साथ ही रहा जिससे राज्य में बीजेपी का मुख्यमंत्री बन सका। बीएमसी के चुनावों में भी उत्तर भारतीय मतदाताओं ने बीजेपी को सत्ता के मुहाने तक पहुंचा दिया। अब बीजेपी के समर्थन में उत्तर भारतीयों की लहर वैसी नहीं दिखाई दे रही है।
उत्तर मुंबई लोकसभा चुनाव में उत्तर भारतीयों का रुझान बीजेपी के सांसद की तरफ कुछ हद तक दिखाई दे रहा है, लेकिन कांग्रेस ने रंगीला गर्ल उर्मिला मातोंडकर को मैदान में उतारकर मराठी वोटरों के साथ-साथ उत्तर भारतीयों को भी आकर्षित करने की कोशिश की है। इस सीट से उत्तर भारतीय वोटों के दम पर 2009 में निरुपम चुनाव जीत चुके हैं। यह बात उर्मिला के लिए बड़ा दिलासा है।
उत्तर पश्चिम मुंबई सीट पर कांग्रेस के संजय निरुपम लड़ रहे हैं। वे मुंबई में चार बड़ी प्रमुख पार्टियों में से एक मात्र उत्तर भारतीय उम्मीदवार हैं। कांग्रेस के हाथ से सत्ता जाने के बाद निरुपम पिछले 4 साल मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उत्तर भारतीयों के बीच रहे हैं। खासकर फेरीवालों के लिए लड़े हैं। उत्तर भारतीय ओबीसी को अपने पक्ष में एकजुट करने के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से निरुपम को इसका फायदा मिलेगा। अगर नहीं मिला, तो यह साबित हो जाएगा कि मुंबई में उत्तर भारतीय ताकत के दावे खोखले हैं। निरुपम के सामने सपा के सुभाष पासी भी चुनाव लड़ रहे हैं। इस वजह से उत्तर भारतीय वोटों का विभाजन होना तय है। वैसे, उत्तर भारतीयों में निरुपम एक परिचित चेहरा है। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि ज्यादा उत्तर भारतीय मतदाता इधर-उधर नहीं भटकेगा नहीं। दूसरी यहां पर उत्तर भारतीयों में बीजेपी का असर है और उम्मीदवार शिवसेना का है। शिवसेना के गजानन कीर्तिकर को उत्तर भारतीय वोट देंगे क्या, यह बड़ा सवाल है।
उत्तर मध्य मुंबई लोकसभा चुनाव क्षेत्र में बीजेपी की पूनम महाजन और कांग्रेस की प्रिया दत्त से उत्तर भारतीयों मतदाताओं का कोई खास लगाव नहीं दिखाई देता। हां, दोनों उम्मीदवारों के प्रति उत्तर भारतीय नेताओं में चहल-पहल जरूर है। चांदिवली के यादव नगर में रहने वाले वाले यादव समाज को प्रिया दत्त के आने का इंतजार जरूर है। हालांकि, उत्तर मध्य में कांग्रेस के पास नसीम खान, कृपाशंकर सिंह, बाबा सिद्दीकी जैसे नेता है। जिनका जनाधार भी है। अगर फिर भी उत्तर भारतीय कांग्रेस के साथ नहीं गया, तो आगामी विधानसभा में लड़ाई मुश्किल होगी।
उत्तर-पूर्व लोकसभा क्षेत्र में मनसे का असर रहा है। मनसे यहां एनसीपी के संजय दीना पाटील का समर्थन कर रही है। यहां का उत्तर भारतीय मतदाता बड़ी बारीकी से इस पर नजर रखे हुए हैं। वैसे इस सीट पर उत्तर भारतीय बीजेपी के करीबी हैं। बीजेपी उम्मीदवार मनोज कोटक की पहचान मृदभाषी के रूप में हैं। इसी तरह दक्षिण मध्य सीट पर शिवसेना के राहुल शेवाले और दक्षिण मुंबई में कांग्रेस के मिलिंद देवरा के नजदीक दिखाई देता है।


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