एशिया की 2 महाशक्तियों का स्वागत क्यों कर रहा है नेपाल?
नई दिल्ली. शनिवार को चेन्नई से काठमांडू के लिए उड़ान भरने के साथ ही शी जिनपिंग (Xi Jinping) पिछले 23 सालों में नेपाल की यात्रा करने वाले पहले चीनी राष्ट्रपति बन गए. उन्होंने रविवार को नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) से मुलाकात की. इस दौरान दोनों देशों के बीच करीब 20 समझौते हुए. इसमें सड़क सुरंग (Road Tunnel) का निर्माण और तिब्बत की ओर रेलवे लिंक को सुविधाजनक बनाने का समझौता भी शामिल है.
वैसे ओली के कार्यकाल में नेपाल की चीन के साथ नज़दीकियां बढ़ी हैं. दूसरी ओर, भारत भी अपने इस पड़ोसी के साथ रिश्ते मजबूत करने में जुटा है. यही वजह है कि केपी शर्मा ओली के पहले कार्यकाल में ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) तीन बार नेपाल का दौरा कर चुके हैं. ऐसे में नेपाल एशिया के दो महाशक्तियों यानी भारत-चीन के साथ संतुलित संबंध बनाए रखना चाहता है.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और नेपाली पीएम केपी शर्मा ओली के बीच सबसे बड़ी डील ट्रांस-हिमालयन कनेक्टिविटी नेटवर्क को लेकर हुई है. दोनों ही देश 2.75 अरब डॉलर के इस नेटवर्क को शुरू करने पर सहमत हो गए हैं, जो कि नेपाल को शी जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट द बेल्ट एंड रोड इशिनिएटिव (BRI) से लिंक करेगी. इसके अलावा चीन-नेपाल काठमांडू के चीन बॉर्डर से जोड़ने के लिए सड़क सुरंग का निर्माण करवाएंगे. इसके अलावा रेल नेटवर्क को भी सुविधाजनक बनाया जाएगा.
दरअसल, 2016 में केपी शर्मा ओली के चीन दौरे के बाद दोनों देशों के बीच के रिश्ते को एक नई दिशा मिली थी. तब भी चीन-नेपाल के बीच कई समझौते हुए थे. इस दौरान हुए एक समझौते के तहत ही चीन का ईंधन नेपाल आ रहा है.
साल 2015 में नेपाल-चीन के रास्ते से प्रतिबंध खत्म करने के लिए ये बहुत जरूरी भी था. बता दें कि मधेसी समुदाय ने एक संवैधानिक डील के खिलाफ करीब 6 महीने तक प्रदर्शन किया था और भारत-नेपाल बॉर्डर ब्लॉक कर दिया था. जिससे नेपाल को काफी आर्थिक और व्यापारिक नुकसान हो रहा था. तत्कालीन नेपाली सरकार ने भारत पर इस प्रदर्शन को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था. हालांकि, भारत ने इन आरोपों को खारिज किया. थोड़े बहुत उतार-चढ़ाव के बाद भी भारत-नेपाल के बीच रिश्ते अच्छे रहे.