मुंबई, आज की भागदौड़ की जिंदगी और आधुनिकता में नमकीन, वेफर जैसे बंद पैकेट खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ गई है। वडा, समोसे, छोले, भजिया जैसे खाद्य पदार्थों में वनस्पति घी यानी डालडा का इस्तेमाल किया जाता है। ये खाने में तो अच्छे लगते हैं लेकिन इसके बेहद ही घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूर्यमुखी, नारियल के तेल तरल होते हैं। गाय-भैंस के दूध से बना घी गर्म मौसम में तरल रहता है और जबकि ठंडे मौसम में जम जाता है। वनस्पति घी की बात करें तो यह दोनों स्थितियों में जमा ही रहता है। इसकी मुख्य वजह है कि तेल में हाइड्रोजन की मिलावट करने पर वह जम जाता है। जब हम तेल से तले खाद्य पदार्थों को खाते हैं तो उसमें इस तेल की महक आती है जबकि वनस्पति घी से बने खाद्य पदार्थ देखने में सुंदर लगते हैं लेकिन महक नहीं आती। बंद पैकेटवाले खाद्य पदार्थों में भी हाइड्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है। जो हार्ट और हड्डियों के लिए घातक है।
वनस्पति घी से बने खाद्य पदार्थ से ट्रांस पैâट एसिड (टीएफए) बनता है। यह शरीर में हाई डेंसिटी लिप्रोप्रोटीन (एचडीएल) की मात्रा बढ़ा देता है और लो डेंसिटी लिप्रोप्रोटीन (एलडीएल) की मात्रा घटा देता है। कॉलेस्ट्रोल की मात्रा भी बढ़ जाती है। इससे हार्ट डिजीज के साथ-साथ टाइप-टू की डायबटीज भी बढ़ती है। नसों में कचरा जमा होने से शरीर में रक्त प्रवाह के लिए हृदय पर बेहद दबाव पड़ता है, जिसका घातक परिणाम होता है। इसके अलावा भजिया, समोसा, पकौड़े आदि को तलने के लिए एक ही तेल या डालडा को दोबारा उपयोग लाना भी स्वास्थ्य के लिए बेहद ही हानिकारक है। डब्ल्यूएचओ का दावा है कि बंद पैकेट और वनस्पति घी से बने खाद्य पदार्थों को खाने से दुनियाभर में सालाना ५ लाख लोगों से ज्यादा की जानें जा रही हैं जो डरानेवाले आंकड़े हैं।
भारत सरकार की मानें तो वर्ष २०२२ तक इंडस्ट्रीयल यानी बंद पैकेट के खाद्य पदार्थों में ट्रांस पैâट को कम करने के लिए अहम कदम उठाए जाएंगे। इंडस्ट्रीयल ट्रांस पैâट में २ज्ञ् से ज्यादा की कमी आ जाएगी। हालांकि सवाल उठ रहे हैं कि दुकानों, खोमचे आदि में बननेवाले समोसे, पकौड़े, भजिया, छोले-भटूरे आदि को बनाने के लिए उसी तेल का दोबारा इस्तेमाल न हो इसके लिए क्या किया जाएगा? इस पर सरकार का तर्क है कि ऐसे तेल को इकट्ठा करके उसका इस्तेमाल रिफाइनरी में किया जाएगा।


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