मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव नहीं रहे आइए जानते हैं उनकी जीवन का इतिहास
कनपुरिया बोली में अपने लोगों से संवाद कर दिल जीत लेने की जो कला राजू श्रीवास्तव में थी, वो शायद ही अब देखने को मिले। मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म लेकर पूरे देश में छा जाने का उदाहरण पेश किया है राजू ने। ऐसे हर दिल अजीज कॉमेडियन किंग, हास्य कलाकर राजू श्रीवास्तव को कनपुरिए कभी नहीं भूल पाएंगे।
किदवईनगर निवासी राजू के पड़ोसी गोरे लाल बताते हैं कि राजू जब छोटा था तभी से लोगों की एक्टिंग करने लगा था। कहीं कोई कार्यक्रम या जागरण होता था तो वहां पहुंच जाता था। मंच खाली मिलते ही शुरू हो जाता था। मिमिक्री के साथ गाना भी अच्छा गाता था। मां सरस्वती राजू से कहती थीं कि साड़ी पहन लो, फिर नाचो, गाओ जाकर। तब राजू कहता था कि इससे क्या होगा, मैं तो एक दिन बड़ा आदमी बनूंगा। जब भी वह घर आता था, उससे ज्यादा खुशी उन लोगों को होती थी। वह खुद सबसे मिलने घर जाता था। हम लोग भी उससे मिलने को उत्साहित रहते थे।पड़ोसी नंदलाल ने बताया कि राजू भाई मुंबई जाने के बाद भी अपनी जमीन को नहीं भूले। वह जब भी अपने घर आए तो गाड़ी से उतरते ही पहले नया पुरवा का एक चक्कर काटते थे। सबसे मिलते मिलाते घर पहुंचते थे। कोई व्यक्ति नहीं मिला तो शाम तक किसी को भेजकर उसे अपने घर बुला लेते थे। सबसे खास बात थी कि वे सबको एक बराबर मानते थे। कोई भी नजर आ जाता तो उससे अपने अंदाज में हाल पूछते। और गुरु, ठीक हौ। इस अंदाज को लेकर तो सभी उनके फैन थे। छोटे-छोटे बच्चे भी उनसे बड़ा प्रभावित थे। कनपुरिया भाषा में बात करना, कोई घमंड नहीं, सरल स्वाभाव से हर किसी का दिल जीत लेते थे। राजू भाई को हम कभी नहीं भूल पाएंगे।
पड़ोसी शिवेंद्र पांडेय ने बताया कि 1984 में तकदीर फिल्म के दौरान अमिताभ बच्चन को जब चोट लगी थी, तब सभी उनके लिए दुआएं करते थे। उसमें खुद राजू भी शामिल थे। उन्होंने अपने घर में अमिताभ बच्चन के लिए पूजा की थी। राजू जब भी घर आए, बड़ी सादगी से आए। हर किसी को हंसाना तो उनकी बचपन की आदत थी। जब वह मुंबई गए तो हर किसी की जुबान पर एक बात थी कि राजू के अंदर कला है, छा जाएगा। अब उनकी मौत ने सभी को रुला दिया।