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मुंबई : महाराष्ट्र की राजनीति में इस वक्त नए समीकरण बनते और पुराने ढहते दिख रहे हैं. शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाविकास आघाड़ी (एमवीए) की विफलताओं को लेकर जो सवाल खड़े किए हैं, उनसे गठबंधन की एकता पर सवाल उठ रहे हैं. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने स्वीकार किया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान एमवीए में सीट बंटवारे को लेकर गलतियां की गईं. ठाकरे ने एमवीए के भविष्य को लेकर चिंता जताते हुए यह भी कहा कि अगर वे विधानसभा चुनावों के दौरान हुईं गलतियों को दोहराना चाहते हैं, तो एक साथ आने का कोई मतलब नहीं है. ठाकरे के इस बयान से यह चर्चा गर्म हो गई है कि क्या देवेंद्र फडणवीस के साथ हाल ही में बंद कमरे में हुई मुलाकात तो इस मोहभंग का कारण नहीं?

उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ को दिए इंटरव्यू में साफ तौर पर माना कि विधानसभा चुनावों में सीट बंटवारे को लेकर एमवीए में जबरदस्त खींचतान रही. यह रस्साकशी आखिरी दिन तक चलती रही और इसका गलत संदेश जनता में गया. उन्होंने कहा कि गठबंधन की सफलता ने कई नेताओं को भ्रमित कर दिया और व्यक्तिगत हित हावी हो गए. ठाकरे के मुताबिक, लोकसभा चुनावों के समय तीनों पार्टियों- शिवसेना (UBT), कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट)- ने एकजुटता दिखाई थी, लेकिन विधानसभा चुनावों में ‘हम’ की भावना ‘मैं’ में बदल गई.

उनका यह बयान इस ओर इशारा करता है कि एमवीए अब वैसा राजनीतिक मंच नहीं रहा जिसमें वह खुद को सहज महसूस कर रहे हैं. यही नहीं, ठाकरे ने यह भी कहा कि यदि यही गलतियां दोबारा दोहराई गईं, तो फिर गठबंधन में लौटने का कोई मतलब नहीं. उन्होंने यह भी जोड़ा कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी कभी एक-दूसरे के कट्टर विरोधी थे, और अब भी जो वैचारिक खींचतान है, वह पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है.

सवाल यह भी उठता है कि क्या यह राजनीतिक असंतोष अचानक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से उभारा गया है? कुछ ही दिन पहले ठाकरे की मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ हुई मुलाकात के बाद यह संकेत मिला कि महाराष्ट्र की राजनीति में ‘पकती खिचड़ी’ के पीछे कुछ और भी पक रहा है. राज ठाकरे के साथ बढ़ती नजदीकियों और संभावित गठबंधन की चर्चा ने एमवीए के भीतर कांग्रेस को भी असहज कर दिया है.

उद्धव ठाकरे ने इंटरव्यू में ईवीएम और चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि जनता के बीच उनके शासनकाल की उपलब्धियों को सही तरीके से पहुंचाया नहीं जा सका. उन्होंने ‘शिव भोजन थाली’, किसानों की कर्जमाफी और कोविड प्रबंधन जैसे कार्यों को जनता तक ले जाने में असफलता को भी स्वीकार किया. उन्होंने हाल ही में पेश हुए ‘महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक’ पर भी सवाल उठाए और कहा कि इस कानून में कोई स्पष्टता नहीं है कि यह महिलाओं पर अत्याचार रोकेगा या जनता की लूट थामेगा.

इन सबके बीच एक बात साफ दिख रही है कि एमवीए के स्तंभों में अब दरारें उभरने लगी हैं और उद्धव ठाकरे खुद इस ढांचे से अलग सोचने लगे हैं. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि क्या फडणवीस के साथ हुई बातचीत ने ठाकरे के मन में सत्ता के नए समीकरण की नींव रख दी है? और क्या शरद पवार का एमवीए अब वाकई राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक हो चला है? 

महाराष्ट्र में अब अगले कुछ महीने राजनीति के लिहाज़ से बेहद अहम होंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि ठाकरे कौन-सी राह चुनते हैं- पुराने साथियों के साथ रहकर असहज समीकरणों को निभाते हैं या फडणवीस के साथ किसी नई ‘सामना’ की तैयारी करते हैं.

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