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मुंबई, 30 अप्रैल (भाषा) बम्बई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को रेलवे को निर्देश दिया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सीवेज अथवा अपशिष्ट जल का इस्तेमाल सिंचाई के लिए तथा देश भर में रेलवे पटरियों के अगल-बगल स्थित जमीन पर होने वाली सब्जियों की खेती के लिए नहीं हो । मुख्य न्यायाधीश न्यायूर्ति प्रदीप नंदराजोग एवं न्यामूर्ति एन एम जमदार की पीठ ने भारतीय रेल के महाप्रबंधक को यह निर्देश देते हुए कहा कि वह यह सुनिश्चित करें कि अदालत के आदेशों को लागू किया जाए और इसका उल्लंघन करने वालों का लाइसेंस रद्द किया जाए । स्थानीय गैर सरकारी संगठन ने अधिवक्ता जे पी खरगे के माध्यम से जनहित याचिका दायर की थी, इसी पर सुनवाई के दौरान अदालत ने रेलवे को यह निर्देश जारी किया है । खरगे ने आरोप लगाया है कि पश्चिमी रेलवे और मध्य रेलवे ने मुंबई के उप नगरीय रेल नेटवर्क में रेल पटरियों के साथ वाली जमीन पर खेती के लिए कुछ लोगों को लाइसेंस दिया है। उन्होंने कहा है, इनमें से कुछ लोग सिंचाई के लिए सीवेज जल का इस्तेमाल कर रहे हैं और इससे ऐसे पानी में मौजूद विषाक्त पदार्थ वहां उगने वाली सब्जियों में जा रहे हैं । खरगे ने अदालत को बताया कि रेलवे पटरियों के आस पास वाली जमीन पर उगने वाली कुछ सब्जियों के रासायनिक विश्लेषण में इनमें शीशा, आर्सेनिक, तांबा और अन्य धातुओं का स्तर बेहद उच्च मिला। उन्होंने बताया कि इन धातुओं का मानव स्वास्थ्य पर गंभीर और प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है । इसके बाद पश्चिम और मध्य रेलवे के अधिवक्ता ने बताया कि सी और डी वर्ग के कुछ कर्मियों को पटरियों के किनारे उपलब्ध अतिरिक्त भूमि पर खेती के लाइसेंस दिये गये हैं,लेकिन नियम उन्हें अपशिष्ट जल के इस्तेमाल की इजाजत नहीं देते। इसके बाद अदालत ने प्राधिकारियों को निर्देश दिए कि लाइसेंस धारी इस तरह के जल का इस्तेमाल नहीं कर पाये यह सुनिश्चित किया जाए।


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