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हमेशा कुछ महीनों के भीतर एक ना एक बार मुझे उस शख़्स के साथ बैठना पड़ता है जो मेरी मां की हत्या की जांच कर रहा है. हमारे परिवार से उस शख़्स का पहला राब्ता छह साल पहले हुआ, जब वो हमारे घर मेरी मां को गिरफ़्तार करने आया.

दरअसल मतदान वाले दिन मेरी मां ने प्रधानमंत्री पद के एक उम्मीदवार पर एक मज़ाक़िया ब्लॉग लिखा था. उस उम्मीदवार के एक समर्थक ने मेरी मां के इसी ब्लॉग के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करवाई थी.

इसके बाद आधी रात में उस पुलिस अधिकारी को हमारे घर भेजा गया. वह मेरी मां का गिरफ़्तारी वॉरेंट लेकर आए थे. मेरी मां का जुर्म सिर्फ़ इतना था कि उन्होंने एक उम्मीदवार के ख़िलाफ़ अपने विचार प्रकट किए थे.

मैं उस वक़्त किसी दूसरी जगह काम कर रहा था. लोगों ने मुझे वीडियो भेजने शुरू किए जिसमें दिख रहा था कि क़रीब 1.30 बजे मेरी मां को पुलिस स्टेशन से रिहा किया जा रहा है, उन्होंने मेरे पिता की शर्ट पहनी हुई थी.

रिहा होने के कुछ ही घंटों बाद, मेरी मां एक बार फिर ऑनलाइन आईं और उन्होंने अपने ब्लॉग पर दोबारा लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि नए प्रधानमंत्री कितना असुक्षित महसूस करते हैं. उन्होंने लिखा, ''मैं इस बेतरतीबी के लिए माफ़ी मांगती हूं, लेकिन जब पुलिस का एक दल आपको गिरफ़्तार करने आपके घर पहुंचता है तो आपके दिमाग़ में सिर्फ़ अपने बाल संवारने, चेहरे पर लगे पाउडर और ब्लशर को हटाना और ख़राब हो चुके कपड़ों को ठीक करना ही चल रहा होता है.'' जिस अधिकारी ने मेरी मां को गिरफ़्तार किया था, वही अब मेरी मां की हत्या की जांच भी कर रहा है. मेरी मां का नाम डाफने करुआना गैलिसिया था. जिस दिन उनकी हत्या हुई उस दिन वो बैंक में अपना खाता दोबारा खुलवाने गई थीं. दरअसल मौजूदा सरकार के कहने पर उनके बैंक खाते को बंद कर दिया गया था. जब उनकी हत्या हुई उस समय उनकी उम्र 53 साल थी और एक पत्रकार के तौर पर काम करते हुए उन्हें 30 साल हो चुके थे. उनकी कार की सीट के नीचे आधा किलो का विस्फोटक रखा गया था. उनकी मौत के बाद सरकार के समर्थकों ने जश्न मनाया, इस जश्न को देखकर मुझे उन लोगों की याद आई जो तुक्रिश-अमरीकी संपादक रैंट डिंक की मौत के बाद जश्न मना रहे थे. कुछ लोगों ने यहां तक कहा कि मेरी मां ने अपनी मौत की तैयारी ख़ुद ही की थी. यह बात बिलकुल उसी तरह थी जैसे अमरीकी संवाददाता जेम्स फ़ोली के लिए कही गई थी जिनकी हत्या सीरिया में कर दी गई थी. यूरोपीयन राजदूतों के सामने मेरे भाई ने कहा, ''तथ्य और विचारों का प्रसार रुकना नहीं चाहिए, पत्रकारों की जमात समाज में मौजूद विचार और लोगों की आवाज़ होती है.'' ''पत्रकारों और खुले विचारों के चलते ही एक समाज जीने लायक़ बन सकता है.'' मां की हत्या के बाद हमें लोगों के समर्थन की ज़रूरत थी. हम चाहते थे कि लोग हमारे इस दुख में हमारा साथ दें. एक बार मेरे एक दोस्त ने मुझसे कहा कि अच्छे लोग हमारे चारों तरफ़ होते हैं बस हमें उन्हें खोजना होता है. हम सभी चाहते हैं कि एक ऐसे समाज में रहें जहां सभी के लिए क़ानून एकसमान हों. मानवाधिकारों की रक्षा की जाए. लेकिन हमारी अधिकतर ख़्वाहिशें कभी पूरी नहीं हो पातीं. जब तक हमें इस बात का एहसास होता है कि हमारे आस पास जो बुरे लोग मौजूद हैं वो किसी बीमारी की तरह हैं, तब तक अक्सर देरी हो जाती है.

हमारी मां की मौत के बाद मेरे भाइयों, मेरे पिता और मैंने अपने लिए कई लक्ष्य तय किए. मैं अपनी मां को न्याय दिलाना चाहता था, उनकी हत्या की जांच करवाकर यह सुनिश्चित करना चाहता था कि इस तरह की घटना दोबारा कभी ना हो. इन तमाम कामों के चलते हमारे पास दूसरे कामों के लिए बहुत कम वक़्त बचता था.


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