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मुंबई : मुंबई मेट्रो को लेकर एक पुराना और बड़ा विवाद एक बार फिर गरमा गया है. मामला पैसे का है और दो पक्ष हैं. एक ओर सरकार की संस्था मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण और दूसरी ओर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर. अब इस लड़ाई की आंच बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है. मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण ने बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश पर ₹560.21 करोड़ की राशि कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कर दी है. यह राशि मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए ₹1,169 करोड़ के मध्यस्थता पुरस्कार का आधा हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यह भुगतान अंतरिम रूप से किया गया है.

क्या है पूरा मामला?

यह विवाद साल 2007 में हुए एक समझौते से जुड़ा है, जो मुंबई मेट्रो की वर्सोवा- अंधेरी- घाटकोपर कॉरिडोर के निर्माण, ऑपरेशन्स और रखरखाव के लिए किया गया था. मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड , रिलायंस इन्फ्रा और मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण का जॉइंट वेंचर है, जिसमें रिलायंस इन्फ्रा की हिस्सेदारी 74% और मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण की 26% है.

इस प्रोजेक्ट में दो साल से ज्यादा की देरी हुई और इसी कारण मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड  ने दावा किया कि इसकी लागत ₹2,356 करोड़ से बढ़कर ₹4,321 करोड़ हो गई.  मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड  ने इसके लिए मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण को जिम्मेदार ठहराया और मुआवजे की मांग की. लेकिन मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण ने इस लागत वृद्धि को मानने से इनकार कर दिया. विवाद मध्यस्थता तक पहुंचा, जहां मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड  के पक्ष में ₹1,169 करोड़ का अवॉर्ड दिया गया. 

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